महाराष्ट्र की सरकार को कोर्ट से तगड़ा झटका, पढ़े पूरी खबर

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मुंबई एसकेटी डॉट कॉम

महाराष्ट्र की शिंधे -भाजपा सरकार को हाईकोर्ट ने उस समय तगड़ा झटका दिया जब महाराष्ट्र गाड़ी विकास सरकार यानी कि शिवसेना और कांग्रेस नीत सरकार पास किए बजट को कोर्ट ने लागू करने का आदेश दिया. अब सरकार ने पुरानी सरकार के द्वारा बजट की घोषणा के बाद इन कार्यों पर रोक लगा दी थी जिसके विरोध में कई जनप्रतिनिधि और संस्थाएं कोर्ट में गई थी जिसके जवाब में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार को पुरानी सभी विकास कार्यों के लिए सूचित बजट जारी करने का आदेश दिया जिसके बाद महाराज विकास आघाडी को संजीवनी मिली है और शिंदे फडणवीस को झटका लगा है.

मुंबई उच्च न्यायालय (Mumbai High Court) की छत्रपति संभाजीनगर खंडपीठ ने आज स्पष्ट आदेश दिया कि महाविकास आघाड़ी सरकार (Mahavikas Aghadi Government) द्वारा स्वीकृत लेकिन शिंदे-फडणवीस सरकार (Shinde-Fadnavis Government) द्वारा स्थगित किए गए बजट में स्वीकृत विकास कार्यों को पूर्ववत कर उसके अनुसार निर्णय लेने के आदेश मुंबई उच्च न्यायालय के छत्रपति संभाजीनगर खंडपीठ ने शुक्रवार को दिए। यह आदेश उन वादियों के कार्यों तक सीमित है। जिन्होंने रिट याचिका दायर की थी और उक्त आदेश से महाविकास आघाड़ी को बड़ी राहत मिली है। जबकि शिंदे-फडणवीस सरकार को बड़ा झटका लगा है।

राज्य में तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार ने वर्ष 2021-22 और 2022-23 के बजट को मंजूरी दी और प्रशासनिक स्वीकृति और तकनीकी स्वीकृति दी थी। परंतु राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद शिंदे फडणवीस सरकार के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद विकास कार्यों को तत्काल स्थगिति दी थी। उक्त रोक विभिन्न विकास कार्यों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों द्वारा सुझाए गए कार्यों को भी दी गई थी। इस रोक के कारण प्रदेशभर में स्वीकृत सभी विकास कार्य ठप पड़े हैं।

जल संरक्षण विभाग के सचिव को नोटिस जारी
सरकार के इस फैसले के खिलाफ हिंगोली जिले के अंबड तालुका, घनसावांगी तालुका, जालना तालुका और वसमत तालुका के जनप्रतिनिधियों ने मुंबई उच्च न्यायालय के छत्रपति संभाजीनगर खंडपीठ में याचिका दायर की थी। जिसमें वसमत के विधायक राजू नवघरे, जालना जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष सतीश टोपे, पूजा कल्याण सपाटे आदि ने एडवोकेट संभाजी टोपे द्वारा रिट याचिका दायर की थी। इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव सहित, नियोजन, ग्राम विकास, आदिवासी, नगर विकास, मृद और जल संरक्षण विभाग के सचिव को नोटिस जारी की थी। उसमें न्यायालय ने इससे पूर्व ही मंजूर हुए कार्य रद्द न करने के अंतरित आदेश दिए थे।
सुनवाई के दौरान चूंकि महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान स्वीकृत विकास कार्यों को दोनों सदनों में बजट में स्वीकृत किया गया था और तत्कालीन राज्यपाल के अनुमोदन के बाद इन विकास कार्यों को संविधान के अनुसार निलंबित नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि यदि सरकार की प्रक्रियाओं और नियमों के अनुसार कोई महत्वपूर्ण निर्णय लिया या रद्द किया जाना है, तो कैबिनेट को एक उचित बैठक करनी चाहिए और कैबिनेट में एक प्रस्ताव लेना चाहिए। राज्य की तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा मंजूर किए हुए कार्य स्थगित करते समय किसी प्रकार की कानूनी प्रक्रिया पर अमलीजामा न पहनाते हुए सिर्फ एक आदेश जारी कर यह काम स्थगित किए गए। इसलिए विविध विकास कार्यों को ब्रेक लगा है। इस तरह की जिरह एडवोकेट टोपे ने की।

फंड के हिसाब से काम करने की मांग
सुनवाई के दरमियान कई कामों पर स्थगिति उठाने की जानकारी सरकार की ओर से हाजिर हुए एडवोकेट ज्ञानेश्वर काले ने पैरवी करते हुए दी। इस पर एडवोकेट टोपे ने न्यायालय को बताया कि राज्य सरकार ने सत्ताधारी विधायकों के कार्यों पर लगी स्थगिति हटायी है। जबकि, विरोधी दलों के जनप्रतिनिधियों के कार्यों पर स्थगिति बरकरार है। याचिका में महाविकास आघाड़ी सरकार के काल में मंजूर किए गए निधि के अनुसार काम करने की विनंती की गई। हाल ही में याचिका की अंतिम सुनवाई होकर निर्णय सुरक्षित रखा गया था। शुक्रवार को न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुए दायर याचिका कर्ता के सभी कार्यों से स्थगिति हटाई है।