Supreme Court : सरकारी कर्मचारियों को तगड़ा झटका, नौकरी में प्रमोशन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला

HR Breaking News, Digital Desk- सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारी नौकरी में प्रमोशन (promotion in government job) पाना संवैधानिक अधिकार नहीं है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह निर्णय सुनाया. यह फैसला भारत में सरकारी नौकरी के प्रति व्यापक रुझान और प्रमोशन के अधिकार को लेकर चल रही चर्चा के बीच आया है, जहां प्रमोशन को अक्सर एक बड़ा प्रोत्साहन माना जाता है.
संविधान में इसके लिए किसी तरह के क्राइटेरिया का उल्लेख नहीं किया गया है, ऐसे में सरकारी कर्मचारी नौकरी में प्रमोशन का दावा नहीं कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन को लेकर कार्यपालिका (केंद्र के मामले में संसद और राज्यों के मामले में विधानसभा) नियम कायदे बना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात (gujrat) में जिला न्यायाधीशों के चयन से संबंधित मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिससे लाखों सरकारी कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति (promotion to government employees) किस आधार पर दी जाए, इस पर हमारा संविधान मौन है. यह फैसला सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के अधिकार को लेकर एक नई बहस छेड़ सकता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने अपने फैसले में आगे कहा कि विधायिका और कार्यपालिका प्रमोशनल पोस्ट की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसको लेकर नियम बनाने के लिए स्वतंत्र है. सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘भारत में सरकारी कर्मचारी को प्रमोशन को अधिकार के तौर पर जताने का अधिकार नहीं है. संविधान प्रमोशनल पोस्ट को भरने के लिए क्राइटेरिया का उल्लेख नहीं करता है.’
फैसले की खास बातें-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नौकरी में प्रमोशन पाना संवैधानिक अधिकार नहीं है.
विधायिका या कार्यपालिका प्रमोशन को लेकर नियम कायदे बना सकती है.
सीनियॉरिटी-कम-मेरिट और मेरिट-कम-सीनियॉरिटी का भी उल्लेख किया.
संविधान में सरकारी नौकरी में प्रमोशन के लिए क्राइटेरिया (criteria) निर्धारित नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन को लेकर सरकार नियम बना सकती है.
सरकार का काम-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि नौकरी में प्रमोशन देने के लिए नियम कायदे और कानूनी प्रावधान तय करने का काम विधायिका और कार्यपालिका यानी कि सरकार का है. सरकार को यह देखना है कि वह किसी सरकारी कर्मचारी से किस तरह का काम करवाना चाहती है, ताकि उसे प्रमोशन (promotion) दिया जाए. साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी तय कर दिया कि ज्यूडिशियरी इस बात की समीक्षा नहीं करेगा कि प्रमोशन सेलेक्शन (promotion selection) के लिए बनाई गई नीति पर्याप्त है या नहीं. हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 16 (समान अवसर की समानता) के तहत विचार किया जा सकता है कि इसका उल्लंघन तो नहीं हुआ है.
प्रमोशन के दो तरीके-
सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में वरिष्ठता (सीनियॉरिटी) और योग्यता (मेरिट) के महत्व पर जोर दिया है. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वरिष्ठता को पदोन्नति का आधार इसलिए बनाया जाता है क्योंकि अनुभवी कर्मचारी अधिक सक्षम होते हैं और यह भाई-भतीजावाद (nepotism) को भी रोकता है. कोर्ट ने वरिष्ठता-सह-योग्यता (seniority-cum-merit) और योग्यता-सह-वरिष्ठता (merit-cum-seniority) दोनों प्रणालियों का उल्लेख किया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति का तरीका हर मामले की परिस्थितियों के अनुसार तय किया जाएगा, यह कोई कठोर नियम नहीं है.
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