स्मृति शेष- तीसरी पुण्यतिथि पर विशेष :-क्यों याद आती हैं हल्द्वानी वालों को आयरन लेडी डॉक्टर इंदिरा हृदयेश

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हल्द्वानी skt. com

हल्द्वानी का नाम अगर जहां आता है एक स्मृति मस्तिष्क में छा जाती है एक थी डॉक्टर इंदिरा हृदयेश लेकिन वह आज भी लोगों की स्मृति में जीवित हैं ।हल्द्वानी के लोग डॉक्टर इंदिरा हरदेश को क्यों याद करते हैं इस सवाल पर सैकडो- हज़ारों जुबानों पर हल्द्वानी की विकास अपनी कहानी शुरू हो जाती है। हल्द्वानी जो एक छोटा कस्बा था एक सीमित दायरे में हल्द्वानी शहर हुआ करता था। बाकी इसके अगल-बगल का क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण था। चाहे वह कालाढूंगी रोड हो बरेली रोड हो अथवा गौलापार का क्षेत्र ।

राज्य बनने के बाद देहरादून जैसे बड़े और ब्रिटिश कालीन समय से ही भारतीय सेना के एक सेंटर के रूप में विख्यात शहर के समक्ष हल्द्वानी को खड़ा करना सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर इंदिरा हरदेश के ही बूते की बात थी। और इसको उन्होंने करके भी दिखाया। उत्तराखंड का देहरादून के बाद हल्द्वानी जी सबसे बड़ा विकसित व्यवसायिक केंद्र है।

हल्द्वानी में जो आज बड़े संस्थान है वह डॉक्टर इंदिरा हृदयेश के विकास की सोच के कारण है काठगोदाम गौलापार में जहां एक ओर सर्किटहाउस है। बरेली रोड में मंडी को एक विकसित मॉडल को तैयार करने के साथ मंडी बाईपास का नहर कवरिंग कर फोरलेन करना, नैनीताल रोड और और कालाढूंगी रोड के चौड़ी करण के साथ ही हल्द्वानी की पहचान के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की स्थापना करने में उनकी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहीकॉलटैक्स से सुशीला तिवारी तक नहर कवरिंग के कार्य को गुणवत्ता पूर्वक पूरा करने में भी उनकी विशेष भूमिका रही । लोगों का कहना यहां तक है कि अगर उन्हें एक मौका और मिलता तो हल्द्वानी की विकास की सारी कल्पनाएं पूरी हो जाती ।

इसके अलावा उन्होंने हल्द्वानी के बनभुलपुरा पूरा से लेकर लामचौड़ कर तक 5-6 से फीट गड्ढे वाली सड़कों को मखमली सड़कों के रूप में बदलने में उनका बड़ा योगदान रहा। हल्द्वानी की एसबीआई से मुखानी तक नहर कवरिंग की योजना का भी उन्होंने शिलान्यास कर दिया था उसके लिए वित्त की स्वीकृति भी दे दी थी वह भी कांग्रेस के शासनकाल में ही बन जाना था लेकिन तत्कालीन सरकार खींचतान की वजह की वजह से यह उसे समय मूर्त रूप नहीं ले पाई लेकिन फिलहाल अब यह बन गई है लेकिन मुखानी तक नहीं बन पाना उनके विकास के सपने के साथ धोखा है।

इंदिरा हृदयेश हल्द्वानी की यातायात व्यवस्था को सुचारू रूप से व्यवस्थित कर देना चाहती थी इसलिए उन्होंने देहरादून की तर्ज पर हल्द्वानी में एक आईएसबीटी के निर्माण की भी नींव रख दी थी। लेकिन कांग्रेस सरकार की वर्ष 2017 में दोबारा नहीं आने की वजह से आईएसबीटी अभी भी सिर्फ खींचतान की वजह से चर्चा का विषय बना हुआ है और 7 वर्ष गुजर जाने के बाद भी आईएसबीटी कहीं भी अस्तित्व में नजर नहीं आ रहा है इससे हल्द्वानी के अलावा पूरे कुमाऊं को विकास से वंचित होना पड़ा है हल्द्वानी में जाम की बहुत बड़ी गंभीर समस्या बनी हुई है अगर आईएसबीटी बन गया होता तो हल्द्वानी शहर जाम से मुक्त हो गया होता इसीलिए लोग आज डॉक्टर इंदिरा हरदेश को याद कर रहे हैं।

वर्ष 2017 के बाद आई सरकारों ने आईएसबीटी को लगभग किनारे कर दिया है जिससे यातायात का दबाव हल्द्वानी शहर में बढ़ गया है पर्यटक सीजन के समय आज कुमाऊं की लाइफ लाइन भवाली- अल्मोड़ा मोटर मार्ग के साथ ही सुप्रसिद्ध पर्यटक नगरी नैनीताल जाम से त्राहि त्राहि कर रही है। विकास की सोच के अंतिम छोर तक सोचने के बाद वह योजनाओं का खाका तैयार करवाती थी और उन पर तुरंत क्रियान्वयन भी होता था।

हल्द्वानी में जिस तरह से पार्किंग की समस्या है और यातायात जाम में फंसा रहता है अगर नैनीताल रोड का चौड़ीकरण नहीं किया होता तो यह समस्या और भी विकराल रूप ले सकती थी। इसके अलावा डॉक्टर इंदिरा हृदयेश ने दमुवाडूँगा में लोगों को मलिकाना हक देने का प्रयास किया इसमें कार्य भी शुरू हुआ था लेकिन सरकार के जाने के बाद दूसरी आई सरकार कांग्रेस सरकार के निर्णय को पेचीदा बना दिया ।

जिसका मामला अभी कोर्ट में चल रहा है । इस मामले को कांग्रेस के प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया लगातार कोर्ट लोगों की ओर से पैरवी कर रहे हैं और फैसला भी जल्द आने की उम्मीद है।

इसके अलावा अनगणित लोगों की विभिन्न समस्याओं पर त्वरित मदद करने की उनकी आदत उन्हें लोगों के नजदीक ले आई थी । चाहे वह मंत्री पद पर थी अथवा नेता प्रतिपक्ष पर वह हमेशा फोन उठाती थी और किसी समस्या पर वह स्वयं पीड़ित व्यक्ति से स्वयं बात करती थी उनकी यह विशेषता उन्हें लोगों के सर्वप्रिय नेता बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।। उनके द्वारा विकास के कार्यों को आज सभी लोग याद करते हैं।

वर्ष 2013 में जब हल्द्वानी के निवर्तमान मेयर अपनी पहली शपथ ले रहे थे तब उन्होंने डॉक्टर इंदिरा हृदयेश को विकास की देवी कहा था। विपक्ष होअथवा सत्ता पक्ष वह सभी के साथ समान व्यवहार करती थी उनके पास विपक्ष के लोग भी अपने कार्यों के लिए जाते थे वह भी निराश नहीं लौटते थे

हमेशा यह देखा गया कि उनके दरवाजे सबके लिए खुले हुए रहते थे जबकि आज की ऐसी परिस्थितियों मे उन के समान पदों पर विराजमान कई हल्द्वानी निवासी नेता गेट के बाहर गार्ड को यह है कहलवा देते हैं कि वह घर में नहीं है जबकि वह स्वयं घर में होते हैं। राजनीति की यह गिरती परंपरा समाज के लिए अच्छी नहीं है।

उनकी यह यह रही कि सिर्फ एक बार छोड़कर हल्द्वानी विधानसभा हमेशा नेतृत्व में रही इस परंपरा को उनके पुत्र एवम हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश बढ़ा रहे हैं सच की तोप उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए हल्द्वानी के लोगों की उनके प्रति विश्वास को नमन करती है

इंदिरा हृदयेश का प्रोफाइल =

नाम : इंदिरा हृदयेश
पिता का नाम : टीकाराम पाठक

जन्मतिथि : 7 अप्रैल 1941

जन्मस्थान : अयोध्या

शिक्षा : वर्ष 1959 में आगरा विवि से स्नातकोत्तर हिंदी एवं राजनीति विज्ञान व बीएड, वर्ष में 1974 कानुपर विवि से पीएचडी

विवाह : 13 अक्टूबर 1967

पति का नाम : हृदयेश कुमार

संतान : तीन पुत्र सौरभ शर्मा, संजीव शर्मा, विद्यायक हल्द्वानी सुमित हृदयेश
1974 में प्रथम बार गढ़वाल-कुमाऊं शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित, वर्ष 1986, 1992, 1998 में फिर से उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित

= उत्तर प्रदेश विधान परिषद में समय-समय पर सरकारी आश्वासन संबंधी समिति, प्रश्न एवं संदर्भ समिति, लखनऊ नगर निगम एवं विभिन्न विकासात्मक प्राधिकरणों के निरीक्षण समिति, उप्र विधान परिषद की विधिक अधिकार समिति की सभापति, अधिष्ठाता मंडल एवं अन्य महत्वपूर्ण समितियों की सदस्या एवं सभापति रहीं।

= 1974 में पहली बार वह उत्तरप्रदेश की विधान परिषद में बतौर सदस्य चुनी गई। वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य के बनने के बाद यहां एमएलसी को एमएलए का दर्जा दे दिया गया।

इसलिए डॉ. इंदिरा हृदयेश भी एमएलसी से एमएलए बनी थीं। तब काशीपुर से केसी सिंह बाबा कांग्रेस के एकमात्र निर्वाचित विधायक थे। ऐसे में राज्य गठन के समय भाजपा की अंतरिम सरकार बनी।2001 में वह कांग्रेस के साथ विधिवत जुड़ीं और कांग्रेस ने पहली अंतरिम नेता प्रतिपक्ष बनाई गईं। फिर 2002 में जब कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें कैबिनेट मंत्री का पदभार सौंपा गया।

= डॉ. इंदिरा हृदयेश पहली बार वर्ष 2002 में सूचना प्रसारण एवं लोनिवि मंत्री बनाई गईं। फिर 2012 में लोनिवि, गृह, वित्त, वाणिज्य कर, स्टांप एवं निबंधन, संसदीय कार्य, विधायी एवं निर्वाचन जैसे महत्वपूर्ण विभागों की मुखिया रहीं। 2017 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने पर उन्हें विधान सदन का नेता, नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।

= वर्ष 2002, 2012 व 2017 में हल्द्वानी विधान सभा से विधायक निर्वाचित हुईं।