फिल्मों जैसी रियल स्टोरी!, सांप के काटने से हुई थी मौत, 13 साल बाद लौटा घर

यूपी से एक ऐसी खबर सामने आ रही है जो आपको फिल्मी लग सकती है। लेकिन असल में ये रियल स्टोरी है। जिस बेटे का परिवार वालों ने जिस बेटे का गंगा में अंतिम संस्कार कर दिया था। वही 13 साल बाद माता-पिता के सामने आकर खड़ा हो गया।
दरअसल 13 साल पहले लड़के की सांप के डसने से मौत हो गई थी। जिसके बाद परिजनों ने उसे गंगा में बहा दिया था। हालांकि अब वहीं लड़का अपने घर जिंदा लौट आया है। वर्तमान में लड़के की उम्र 26 साल है। युवक को जिंदा देख सभी रिश्तेदार भी हैरान है। चलिए पूरी कहानी जान लेते हैं।
13 साल बाद मरे हुए बेटे की घर वापसी
दरअसल ये मामला औरंगाबाद के गांव सूरजपुर टिकरी का है। यहां के निवासी सुखपाल सैनी की माने तो 13 साल पहले उनके पुत्र दीपू भूसे की कोठरी से कुम काम करने के दौरान सांप द्वारा डस लिया गया था। दीपू को सांप काटने का इलाज करने वाले व्यक्ति के पास ले जाया गया। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया था।
सांप के काटने से हुई थी मौत, 13 साल बाद लौटा घर
परिजनों ने मृत मानकर उसे ब्रजघाट में गंगा में प्रवाहित कर दिया था। बेटे की मौत से मां सुमन देवी टूट चुकी थी। वो दिन रात बेटे की याद में खोई रहती थीं। किसी ने उन्हें बताया कि सांप काटने से मृत लोगों को सपेरे जड़ी बूटियों से जीवित कर देते हैं। इसी की आस में वो आसपास के सपेरों के यहां जाने लगी।
1 साल पहले बेटे के बारे में पता लगा
सुखपाल के मुताबिक एक साल पहले पलवल में बंगाली बाबा के आश्रम में उन्हें एक अपने बच्चे जैसा युवक दिखा। उसके कान के पीछे वैसा ही निशान था जैसे उनके बेटे के कान के पीछे था। जिसके बाद उन्होंने युवक के बारे में जानकारी जुटाई।
मरा बेटा जिंदा देखकर परिवार में खुशी की लहर
परिवार की माने तो आश्रम के बुजुर्ग सपेरों ने बताया कि दीपू को गंगा में प्रवाहित करने के बाद उन्होंने निकाला था। जिसके बाद वो उसे पलवल के गांव नागल स्थित बंगाली नाथ बाबा के आश्रम लाया गया। कई दिनों तक सपेरों ने जड़ी बूटियों से उसका इलाज किया। कुछ समय बाद वो सही हो गया।
दीपू लौटा अपने घर
उसे फिर बंगाल भेज दिया गया था। छह साल पहले उसे दौबार से आश्रम लाया गया। तब से वो यहीं रह रहा है। जब परिवार वालों ने दीपू को घर ले जाने की इच्छा जताई तो सपेरों ने धार्मिक मान्यता का हवाला देकर उसे एक साल बाद भेजने की बात कही। एक साल बाद दीपू को आश्रम वालों ने उसके गांव भेज दिया। सभी परिवार वाले और रिश्तेदार उसे देखकर खुश हो गया।
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