बांग्लादेश के तख्ता पलट मे आईएसआई का कितना हाथ
बांग्लादेश का छोटा – सा इतिहास पाकिस्तान से ज़्यादा अलग नहीं रहा। देश की आज़ादी के ध्वज वाहक और राष्ट्रपिता की हैसियत रखने वाले शेख मुजीबुर्रहमान को परिवार सहित आज़ादी के चार साल बाद ही मार दिया गया। उनकी दो बेटियाँ शेख़ हसीना और उनकी बहन चूँकि उस वक्त देश में नहीं थी, इसलिए बच गईं।
हालाँकि छह साल तक भारत में शरण पाने के बाद मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख़ हसीना वाजेद बांग्लादेश लौटीं और वहाँ की प्रधानमंत्री बनीं। हसीना को भारत में इसलिए शरण लेनी पड़ी क्योंकि जियाउर्रहमान की सैन्य सरकार ने तब तक उनके स्वदेश लौटने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
जियाउर्रहमान वही थे जो मौजूदा बांग्लादेश नेशनल पार्टी की प्रमुख ख़ालिदा जिया के पति थे। बाद में जियाउर्रहमान को भी मार दिया गया और उनकी पत्नी ख़ालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं। लेकिन हसीना से एकदम भिन्न ख़ालिदा जिया का राज लोकतंत्र के नाम पर धब्बा ही रहा। उनकी पार्टी कट्टरपंथी रही और घोर कट्टरपंथी पार्टी जमायते इस्लामी की कठपुतली बनी रही।
जमायते इस्लामी पर पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का वरदहस्त रहा। माना जा रहा है कि मौजूदा छात्र विद्रोह के पीछे भी जमायते इस्लामी और आईएसआई का ही हाथ है। लगातार चौथी बार और कुल मिलाकर पाँचवीं बार प्रधानमंत्री बनी शेख़ हसीना का राज इन दोनों को पच नहीं पा रहा था।
बांग्लादेश के ढाका में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की खबर के बाद उनके पोस्टर के पास जश्न मनाते प्रदर्शनकारी।
बांग्लादेश के ढाका में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की खबर के बाद उनके पोस्टर के पास जश्न मनाते प्रदर्शनकारी।
बात शुरू हुई थी आरक्षण विरोध से। शुरुआत में बांग्लादेश में अस्सी प्रतिशत आरक्षण हुआ करता था। बाद में इसे घटाकर 64 प्रतिशत कर दिया गया। बाद में छात्रों ने इसके खिलाफ आंदोलन किया और इसे घटाकर हसीना सरकार ने मात्र सात प्रतिशत कर दिया।
कालांतर में ढाका हाईकोर्ट ने आरक्षण को पहली स्थिति में लाने का आदेश दिया। छात्रों ने फिर इसके खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। देश के सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण खत्म कर दिया लेकिन आंदोलनकर्मी छात्र इससे भी संतुष्ट नहीं हुए।
शुरुआत में छात्रों का विरोध उस तीस प्रतिशत आरक्षण सेना भांजों स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को दिया जा रहा था। ये आरक्षण भी जब खत्म कर दिया गया तो छात्रों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफ़े की माँग शुरू कर दी। हिंसक हो गए। लाखों छात्र और लोग, प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर आए।
शेख़ हसीना को हालाँकि पता था कि इन छात्रों के पीछे जमायते इस्लामी और आईएसआई है लेकिन इस स्थिति को सावधानी से डील करने की बजाय हसीना ने आंदोलनकर्मियों को रजाकार की संज्ञा दे डाली। राजकार दरअसल ग़द्दारों को कहा जाता है। बांग्लादेश की आज़ादी के वक्त जो लेग बांग्लादेशी होते हुए भी पाकिस्तान के साथ थे, उन्हें राजकार कहा गया था।
शेख़ हसीना के इस राजकार संबोधन के बाद ही आंदोलन और भड़क गया। नतीजा सामने है। निश्चित ही बांग्लादेश की आने वाली नस्ल के मुस्तकबिल को रोशन करने के लिए शेख़ हसीना ने हर चंद कोशिश की लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मुल्क को आज़ादी दिलाने वाले उनके पिता को मार डालने वाली जनता खुद उनके पीछे भी उसी तरह पड़ जाएगी! आख़िर इस डर के कारण उन्हें सोमवार की सुबह देश से भागना पड़ा। उनका पैत्रिक निवास और पार्टी कार्यालय आंदोलनकर्मियों ने फूंक डाला।
प्रधानमंत्री निवास में घुसकर लूट-खसोट की। आख़िर वे सोमवार शाम को दिल्ली आ पहुँची। यहाँ से वे लंदन या फ़िनलैंड जाने की तैयारी में हैं। जाहिर है भारत सरकार हसीना को स्थाई शरण देने का रिस्क नहीं ले सकती। चीन और पाकिस्तान का मोर्चा खुला होने की सूरत में भारत बांग्लादेश की नई सरकार से भी दुश्मनी लेना नहीं चाहती। वैसे भी बांग्लादेश में चल रहे उपद्रव से भारत में उस तरफ़ से घुसपैठ का संकट बढ़ गया है।
साथ में बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं के ऊपर भी जान का ख़तरा हो सकता है। यही वजह है कि शेख़ हसीना को फ़िलहाल ग़ाज़ियाबाद के हिंडन एअरबेस पर ही रोके रखा गया है। राजधानी में नहीं लाया गया है। फ़िलहाल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर देश से भागी शेख़ हसीना का अब वापस देश लौटना लंबे समय तक तय नहीं है। उन्हें जिस देश में भी जाना है, शरणार्थी के तौर पर ही रहना है।
बांग्लादेश की सेना ने वहाँ अंतरिम सरकार बनाने का वादा किया है। शांति स्थापित होने के बाद वहाँ अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा। समझा जाता है कि लम्बे समय तक सबकुछ ठीक चलने पर ही स्वतंत्र चुनाव की गुंजाइश देखी जाएगी।
शेख हसीना की गलती यह रही कि वे आंदोलन और उसकी तीव्रता को ठीक तरह से भांप नहीं पाईं। लम्बे समय के शासन के बाद उनका पब्लिक से कनेक्ट नहीं रहा। आसपास के अफ़सरों ने उन्हें वही बताया या बताते रहे जो वे सुनना चाहती थीं। लम्बे शासनकाल की दुविधा यही होती कि शासक सच को देख नहीं पाता या उसे सच दिखाया ही नहीं जाता। शेख़ हसीना के साथ भी यही हुआ।
अगर अब बांग्लादेश में जमायते इस्लामी का शासन आता है तो यह भारत के लिए दुखदाई होगा। आख़िर बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कराने में भारत के योगदान को आईएसआई भूलना नहीं चाहती। वह जितना हो सकेगा, आग में घी डालने से बाज नहीं आएगी।
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