अब दयारा बुग्याल भी भूस्खलन की चपेट में, जानें क्यों दरक रहा मखमली घास का मैदान ?
जोशीमठ, नैनीताल के बाद अब दयारा बुग्याल भी भूस्खलन की चपेट में आ गया है। दयारा बुग्याल के मखमली घास के मैदान अब दरकने लगे हैं। हिमालयी इलाकों में लगातार हो रहे भूस्खलन और भू-धंसाव ने दयारा बुग्याल के इस खूबसूरत इलाके को दरारों और मलबे से भर दिया है। जिसके बाद दयारा बुग्याल अस्तित्व भी खतरे में है।
दयारा बुग्याल भी भूस्खलन की चपेट में
दयारा बुग्याल जिसे स्वर्गीय सुंदरता का प्रतिरूप माना जाता है। जहां हर साल प्रकृति का धन्यवाद करने के लिए उत्तरकाशी के स्थानीय मक्खन, छाछ और दही की होली खेलते हैं। जिसकी प्राकृतिक सुंदरता को देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी लोग यहां आते हैं। लेकिन आज प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर दयारा बुग्याल भी भूस्खलन की चपेट में है।
सिंकिंग जोन के अंतर्गत आता है दयारा बुग्याल
उत्तरकाशी के डीएफओ के मुताबिक दरअसल दयारा बुग्याल एक सिंकिंग जोन के अंतर्गत आता है। डीएफओ ने बताया की भटवाड़ी से लेकर दयारा बुग्याल तक का पूरा ऊपरी इलाका धंसाव क्षेत्र है। जैसे ही नीचे का इलाका धंसता है तो ऊपर बुग्याल में दरारें पड़ने लगती हैं। समय के साथ ये दरारें और चौड़ी होती जा रही हैं।
क्यों दरक रहा है मखमली घास का मैदान ?
लिहाजा जब बरसात होती है तो इन दरारों में पानी घुस जाता है। इस कारण दयारा बुग्याल में भूस्खलन और भूधंसाव और भी ज्यादा तेजी से बढ़ने लगा है। बता दें कि साल 2019-20 में भी दयारा बुग्याल से भूस्खलन और भू-धंसाव की तस्वीरें सामने आईं थी। तब वन विभाग ने ओडिशा से जूट और नारियल के रेशों से तैयार जाल यानें केयर नेट मंगवा कर बिछाए थे। जिससे भूस्खलन और भू- धंसाव में कमी आ सके। लेकिन अब ये कोशिशें बीते वक्त की बातें बन चुकी हैं।
हाल ही में अंढूड़ी उत्सव के दौरान एक बार फिर दयारा बुग्याल की भूस्खलन और दरारों की डरावनी तस्वीरें सामने आई हैं। इसके पीछे का एक सबसे बड़ा कारण यहां बढ़ रहा मानवीय हस्तक्षेप है। इन बुग्यालों का लगातार दोहन किया जा रहा है। जिससे यहां का नाजुक इको सिस्टम सूखी पत्तियों की तरह बिखरने लगा है।
हालांकि ऐसा नहीं है की पहली बार ही लोग इन बुग्यालों में जा रहे हैं। पहले भी लोग अपने मवेशी चराने के लिए इन बुग्यालों में जाया करते थे। यहां अपने मवेशियों के कई महीनों तक छोड़ दिया करते थे। अब बढ़ते पर्यटन के कारण इन बुग्यालों के हाल और भी खस्ता होते जा रहे हैं।
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