#Nilamber @Pant वो पहाड़ी वैज्ञानिक जिसके बिना अधूरा है भारत का अंतरिक्ष अभियान, पढ़िए नीलाम्बर पंत की कहानी

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आज जहां भारत चंद्रयान-3 के माध्यम से चांद के साउथ पोल तक पहुंच गया है। तो वहीं किसी जमाने में भारत ने रोहिणी और भास्कर जैसे उपग्रह भी अंतरिक्ष में भेजे थे। भारत की इस सफलता के पीछे कई सालों का फेलियर और प्रयास है जिसमें उत्तराखंड में पले बड़े एक ऐसे शख्स का भी योगदान है।

अल्मोड़ा में जन्मे थे नीलामंबर पंत
25 जुलाई 1931 के दिन सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में पद्मादत्त पंत के घर एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम नीलाम्बर पंत रखा गया। नीलाम्बर पंत बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी अव्वल थे। अल्मोड़ा से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से फिजिक्स की शिक्षा ग्रहण की नीलाम्बर पंत को बचपन से आर्मी में जाने का काफी शौक था।

शायद उसका कारण पहाड़ों के माहौल में पले बड़े होना हो। क्योंकि पहाड़ों में युवाओं के अंदर देश सेवा करने का एक अलग ही जुनून होता है। यहां के हर घर से एक ना एक बच्चा सेना में होता ही है। नीलाम्बर पंत का ये सपना सच भी हुआ। सन 1954 में जब भारतीय सेना के कॉर्प्स ऑफ़ सिग्नल में उन्हें नौकरी मिली। आपको बता दें की इंडियन आर्मी कॉर्प्स (कोर ऑफ़ सिग्नल) भारतीय सेना का एक आर्म है जो सैन्य संचार को संभालता है।

नीलाम्बर पंत ने की थी देश के पहले उपग्रह संचार स्टेशन की स्थापना
सेना में भर्ती होने के बाद भी नीलाम्बर पंत ने अपनी पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी। पढ़ने लिखने के इस शौक ने उन्हें सन 1964 में यूएस आर्मी सिग्नल सेनटर एंड स्कूल पहुंचा दिया। जहां से उन्होंने माइक्रोवेव रेडियो ऑफिसर का कोर्स 99% अंकों के साथ पूरा किया। न्यू जर्सी में कीर्तिमान स्थापित करने के बाद उन्हें 1965 में डेपुटेशन पर विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद में स्थापित अंतरिक्ष केंद्र भेज दिया।

जहां उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर देश के पहले उपग्रह संचार स्टेशन (ई.एस.एल.एस/ESLS) की स्थापना की।इस उपलब्धि के बाद कर्नल निलाम्बर पंत का रुझान अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ा और उन्होंने सेना से खुद रिटायरमेंट ले लिया। जिसके बाद उनका एक आर्मी ऑफिसर से अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने का सफर शुरू हुआ।

ऐसे बना एक फौजी अंतरिक्ष वैज्ञानिक
कर्नल निलाम्बर पंत ने ये कभी नहीं सोचा था की एक सैन्य अफसर होकर वो कभी अंतरिक्ष विज्ञान में रुची लेंगे। लेकिन उनका रूझान इतना बढ़ा कि वो फौज से रिटायरमेंट लेने के बाद वो पूरी तरह से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) से जुड़ गए।

इसरो में जुड़ने के बाद सन 1977 में कर्नल पंत को बंगाल की खाड़ी में श्रीहरिकोटा में नवस्थापित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र (SHAR) का निदेशक बना दिया गया। आने वाले पांच सालों में उन्होंने अहमदाबाद दिल्ली और अमृतससर में स्थित अर्थ स्टेशनों में काम किया। जहां कर्नल पंत का सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (SITE) के विकास में बड़ा हाथ था। आने वाले कुछ सालों में ये विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

भास्कर, रोहिणी जैसे अनेक उपग्रह किए लांच
ड़ा. ए.पी.जे अब्दुल कलाम के निर्देशन में इस केन्द्र ने अस्सी के दशक में SLV-3 यानी की सेटेलाईट लांच व्हीकल के माध्यम से भास्कर, रोहिणी जैसे अनेक उपग्रह सफलतापूर्वक लांच किए। जिनका संचालन कर्नल पंत द्वारा ही किया गया। इसके बाद सन 1990 में वो इ.स.रो के उपाध्यक्ष बना दिए गए। सेवानिवृत्ति के बाद भी वो इसरो का मार्गदर्शन करते रहे।

1984 में पद्म श्री पुरस्कार से हुए सम्मानित
कर्नल निलाम्बर पंत के अभूतपूर्व योगदान के लिए सन 1967 में उन्हें विक्रम साराभाई से नवाजा गया। इसके साथ ही 1984 में पद्म श्री पुरस्कार के साथ ही कई अन्य पुरस्कारों से भी उन्हें सम्मानित किया गया। इसरो में उनके योगदान ने न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में बल्कि देश की प्रगति में भी नए दिशानिर्देश प्रदान किए। जो आज भी हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अमूल्य है।