कुमाऊँ- ग्रामोत्थान रीप की योजना ने बदली आशा देवी की तकदीर, पूरे राज्य के लिए अब हैं मिसाल

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GRAM VIKAS SAMITI

अल्मोड़ा में ग्राम विकास समिति और ग्रामीण उद्यम त्वरण परियोजना यानी REAP के सुखद परिणाम मिलने शुरु हो गए हैं। अल्मोड़ा के द्वाराहाट विकासखंड के गांव विजयपुर की रहने वाली आशा देवी इसका उदाहरण हैं। योजना से जुड़ने के बाद आशा देवी की आय में इजाफा हुआ है और वो पहले से बेहतर जीवन बिता रही हैं।

प्रेरणादायक है आशा देवी की कहानी

दरअसल द्वाराहाट में विजयपुर गांव की आशा देवी मूल रूप से पारंपरिक खेती पर ही निर्भर थीं। उनके परिवार का पालन पोषण आसपास के कई परिवारों की ही तरह पारंपरिक खेती से मिलने वाली आय के जरिए होता आ रहा था। हालांकि पिछले कुछ वक्त में सामाजिक परिवर्तनों ने उनकी कृषि आय को भी कम कर दिया था। इसी बीच उन्हे ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना का साथ मिला। इस परियोजना के तहत आशा देवी को दुधारू गाय खरीदने में मदद मिली।  ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना ने आशा देवी को 35000 की आर्थिक मदद उपलब्ध कराई। इस राशि से आशा देवी ने साहिवाल गाय, कंपोस्ट किट आदि का निर्माण कराया और अब इस दुधारू गाय का दूध बेचकर वो अपनी आय को बढ़ा चुकी हैं।

रोजाना बेचती हैं आठ लीटर दूध

ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना से मिली मदद ने आशा देवी की आर्थिक स्थिती को सुधारने में खासी मदद की। दुधारू गाय मिलने के बाद अब आशा देवी रोजाना सात से आठ लीटर दूध बेच लेती हैं। इसके साथ उनके परिवार के लिए भी दूध की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है। दूध के कारोबार से आशा देवी को प्रतिमाह 8000 रुपए तक की अतिरिक्त आय हो रही है।

ग्रामोत्थान रीप ने बदली तकदीर

कृषि और पशुपालन उत्तराखण्ड के पर्वतीय गांवों की आजीविका का मुख्य साधन है, परन्तु कुछ दशकों से भूमि का बटवारा ढ़ाचागत संसाधनो के विकास एवं जलवायु परिवर्तन से कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय गिरावट आयी है। ग्रामोत्थान रीप द्वारा पर्वतीय कृषि क्षेत्र में सुधारिकरण एवं तकनीकी हस्तांत्रण का एक साकारात्म प्रयास शुरू किया है, इसी के तहत परियोजना द्वारा सहकारिताओं के माध्यम से क्षेत्र के प्रगतिशील महिला किसानों को इन चुनौतियों के सापेक्ष कृषि उत्पादकता बढ़ाने एवं पुनः कृषि एवं पशुपालन को उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों की आजीविका के रूप में स्थापित करने का सफल प्रयास किया है। द्वाराहाट विकास खण्ड के विजयपुर गांव की आशा देवी ने यह साबित कर दिखाया है कि पर्वतीय क्षेत्रों में पशुपालन एक किफायती और टिकाऊ व्यवसाय हो सकता है।