उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध Mahasu Devta मंदिर जाने से पहले जान लें ये महत्वपूर्ण बातें…

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mahasu devta temple hanol

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पूजे जाने वाले महासू देवता (Mahasu Devta temple) का मंदिर काफी प्रचलित है। इन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। ‘महासू’ शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। ये भगवान शिव के प्रति संबद्धता को दर्शाता है। महासू या महाशिव कहे जाने वाले न्याय के देवता उत्तराखण्ड में जौनसार क्षेत्र के लोकदेवता माने जाते हैं। तो वहीं हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर, और जुब्बल में भी महासू देवता पूजे जाते हैं। महासू देवता का मुख्य मंदिर उत्तराखंड के हनोल गांव(where is mahasu devta temple) में है।

बौठा महासू हनोल में स्थित मुख्य मंदिर में पूजे जाते हैं। इसके अलावा बासक महासू मेंड्रथ में और पबासिक महासू ठडियार गांव में पूजे जाते हैं। इन सबके छोटे भाई चालदा महासू को घुम्मकड़ देवता भी माना जाता है। इन्हें हर साल अलग-अलग स्थानों में पूजा जाता है। लोक मान्यताओं के मुताबिक, चालदा महासू 12 साल उत्तरकाशी और 12 साल देहरादून में घूमते हैं।

न्याय के देवता महासू (mahasu devta temple hanol)

महासू देवता को न्याय का देवता कहा जाता है। स्थानीय लोग महासू देवता के पास अपनी समस्याए लेकर आते है। लोगों के मन में आस्था है कि वो उनकी समस्याओं का समाधान और न्याय करेंगे। मान्यता है कि अगर कोई भी सच्चे दिल से यहां पर प्रार्थना करने आता है उसे न्याय अवश्य मिलता है।

चार महासू देवता

महासू चार देवाताओं का सामूहिक नाम है। ये कोई एक देवता नहीं है, बल्कि ये एक देवकुल है-बासक, पिबासक, बौठा और चालदा। ये चार भाई और माता देवलाड़ी सामूहिक रूप से महासू कहलाते हैं। इन चारों भाइयों को शिव का रूप माना जाता है।

  1. बासिक महासू: इनका मंदिर मैंद्रथ में मौजूद है।
  2. पबासिक महासू: पबासिक महासू का मंदिर ठडियार और देवती-देववन में स्थित है।
  3. बूठिया महासू (बौठा महासू): हणोल के मुख्य मंदिर में बौठा महासू की पूजा होती है।
  4. चालदा महासू: चालदा महासू घुम्मकड़ देवता है। ये अलग-अगल जगहों में भ्रमण करते रहते हैं।

महासू देवता से जुड़ी किंवदंती mahasu devta history in hindi

महासू देवता की कहानी पौराणिक है। महासू देवता के बारे में कई सारी किंवदंतियां प्रचलित है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जौनसार-बावर क्षेत्र में किरमीक नामक राक्षस का आतंक था। गांववाले उसे शांत रखने के लिए इंसानों की बलि दिया करते थे। हूणाभाट नामक ब्राह्मण के छह पुत्र पहले ही बलि चढ़ चुके थे और अब उसका सातवां पुत्र भी खतरे में था।

एक दिन जब उसकी पत्नी नदी से पानी भर रही थी। तो किरमीक ने उस पर हमला कर दिया। किसी तरह बचकर निकली महिला के आधे भरे बर्तन से एक भविष्यवाणी हुई कि अगर वह अपने पुत्र और क्षेत्र को बचाना चाहती है, तो अपने पति को कश्मीर भेजे, जहां महासू देवता रहते हैं।

हूणाभाट ने तुरंत कश्मीर जाकर महासू देवताओं से सहायता मांगी। उनकी भक्ति देखकर चारों महासू भाई—बासिक, पबासिक, बौठा और चालदा—जौनसार आए और किरमीक का वध कर लोगों को उसके आतंक से मुक्त किया। तभी से महासू देवता को इस क्षेत्र के कुल देवता के रूप में पूजा जाने लगा।

इसके अलावा एक किवदंती के अनुसार जौनसार बावर क्षेत्र में एक राक्षस किरमिक ने आतंक मचाया हुआ था। जिससे परेशान होकर हूणाभाट नाम के एक ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की आराधना की। जिससे शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने हनोल में 4 महासू भाइयों की उत्त्पत्ति की और ये चारों महासू भाइयों ने किरमिक का वध कर दिया। तभी से ये जौनसार में कुल देवता के रूप में पूजे जाने लगे।


मिहिरकुल ने कराया था इस शिव मंदिर का निर्माण

बौठा महासू हनोल में स्थित मुख्य मंदिर में पूजे जाते हैं। बताया जाता है हनोल में स्थित महासू के मुख्य मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल हूण ने करवाया था। मिहिकुल हूण कट्टर शौव था। मिहिरकुल हूण के बारे में मंदसोर अभिलेख में लिखा हुआ है की ‘यशोधर्मन’ से युद्ध होने से पहले तक मिहिरकुल ने शिव के अलावा किसी और के सामने अपना सिर नहीं झुकाया था।

मिहिर कुल की शिव भक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की जहां एक तरफ हर राजा अपने राज्य में छपने वाले सिक्कों में अपनी उपाधि या अपना नाम लिखवाते थे। वहीं मिहिरकुल के राज्य में छपने वाले सिक्कों में जयतु वृष लिखा रहता था। जिसका मतलब होता है जय नंदी। हनोल का ये महासू मंदीर हूण शैली में बना है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के मुताबिक ये मंदिर 9वीं से 10वीं शताब्दी में बना है।

मंदिर के अंदर छिपा है रहस्य

महासू देवता का मंदिर अपने अंदर कई रहस्य छिपाए हुए है। कहा जाता है कि महासू देवता के इस मंदिर के गर्भगृह में एक अखंड ज्योति जलती रहती है। लेकिन इसके गर्भगृह में जाने की अनुमति मंदिर के मुख्य पुजारी के अलावा किसी को भी नहीं है। ये भी कहा जाता है की मंदिर के अंदर जलाभिषेक करती एक पानी की धारा भी बहती है। जिसके ना आदि का पता है ना ही अंत का। ये मंदिर के अंदर से बहते हुए ही अदृश्य हो जाती है। इसके साथ ही मंदिर में एक विशाल पत्थर(भीम छतरी) भी स्थापित है। कहा जाता है कि ये भीमसेन द्वारा घाटा पहाड़ से लाया गया है।

यहां लगता है जागड़ा मेला

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में हरतालिका तीज के दिन बड़ी धूम धाम से महासू देवता के मंदिर में विशाल जागड़ा मेला का आयोजन होता है। जागड़ा का शाब्दिक अर्थ होता है ‘रात का जागरण’। जागड़ा उत्सव के दिन न्याय के देवता महासू की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रख कर रात भर महासू देवता के न्यायालय में जागरण करते हैं। सुबह होते ही महासू देवता की प्रतिमा को देवडोली में बिठा कर लोकवाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ यमुना और भद्रीगाड़ में स्नान के लिए ले जाया जाता है।

देवडोली को एक बार मंदिर से उठाने के बाद कहीं भी नहीं उतारा जाता। श्रद्धालु बारी-बारी कंधे बदलते हुए डोली को मंदिर से ले जाकर स्नान करवाते हैं। वापस मंदिर पहुंचने पर ही देव डोली कंधे से उतारी जाती है। मंदिर में फिर से स्थापित होने के बाद महासू देवता की पूजा की जाती है। जिसके बाद व्रत भी समाप्त कर लिया जाता है। उत्तराखंड में बसा ये न्यायालय काफी लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। अगर आप सब जगह न्याय की गुहार लगा कर थक गए हैं तो एक बार उत्तराखंड में बसे इस न्याय के देवता के दरबार में अर्ज़ी लगाने ज़रूर आएं।

कैसे पहुंचे mahasu devta Mandir

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हनोल गांव में महासू देवता का मंदिर(where is mahasu devta temple) स्थित है। ये टौंस नदी के तट पर बसा है। समुद्र तल से ये मंदिर करीब 1,250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

राजधानी देहरादून से महासू देवता मंदिर की दूरी की बात करें तो ये निर्भर करता है कि आपने कौन सा मार्ग चुना है। देहरादून से हनोल की दूरी करीब 175 से 190 किलोमीटर(mahasu devta temple distance from dehradun) के बीच है। तो वहीं दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 400 किलोमीटर है।

यात्रा का मार्ग

आप कहीं से भी आ रहे हो, सबसे पहले आपको देहरादून पहुंचना होगा। सड़क मार्ग देहरादून, मसूरी और चकराता जैसे प्रमुख स्थलों से जुड़ा हुआ है।

  • सड़क मार्ग: देहरादून से हनोल जाने के लिए आप चकराता और त्यूनी होते हुए जा सकते है। जिसकी टोटल दूरी करीब 188 किलोमीटर है। देहरादून से हनोल पहुंचने में करीब 6 से 7 घंटे का समय का लग सकता है। आपको बड़ी ही आसानी से बस या फिर टैक्सी मिल जाएगी।
  • रेलवे मार्ग: मंदिस से सबसे पास देहरादून रेलवे स्टेशन है। ये मंदिर से करीब 171 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आपको आसानी से टैक्सी या बस मंदिर तक के लिए मिल जाएगी।
  • हवाई मार्ग: सबसे नजदीक जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून है। ये मंदिर से करीब 202 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है।
    हवाई अड्डे से आपको आसानी से हनोल तक की टैक्सी मिल जाएगी।

ठहरने और खाने की सुविधा

हनोल गांव में बेसिक गेस्ट हाउस और धर्मशालाएं आपको आसानी से मिल जाएगी।

यात्रा के लिए सुझाव

  • पहाड़ी मार्ग है इसलिए जरूरी है कि आप यात्रा के दौरान सावधानी बरतें।
  • मौसम की जानकारी पहले से ही ले लें। बारिश के कारण सड़कें फिसलन भरी हो सकती हैं।
  • सुबह के समय यात्रा करना बेस्ट है।

mahasu devta temple tickets

महासू देवता मंदिर रोज सुबह 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में किसी भी प्रकार की कोई एंट्री फीस नहीं है। भक्तों और पर्यटकों के लिए ये निशुल्क(mahasu devta temple tickets) है।