Kanwar Yatra 2024: कितने प्रकार की होती है कांवड़? क्या है इस कांवड़ यात्रा के कठिन नियम जो कांवड़ियों को करने होते है फॉलो?

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आज सावन का पहला सोमवार (Sawan Somwar 2024) है। सावन की शुरुआत के साथ ही केसरिया रंग में रंगे कावडिये हमें भोले शंकर का जयकारा लगाते हुए दिख जाते हैं। कावड़ियों की इस यात्रा को कावण यात्रा कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ कई प्रकार की होती है। अलग-अलग कांवड़ के अलग नियम होते है। जिनको कांवड़ियो को फॉलों करने होते है। ऐसे में चलिए जानते है कांवड़ के बारे में।


क्या होती हैं कावण?
कावड़ बांस या लकड़ी से बना डंडा होता है जिसे रंग बिरंगी पट्टी से सजाया जाता है। इसके दोनों तरफ एक-एक टोकरी होती है। जिसमें गांगाजल रखने का पात्र होता है। इसे कावडिए अपने कंधे पर लटकार गंगा जल भरकर अपने पास के प्रतिष्ठित शिवालय में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।


कैसे शुरु की जाती है ये यात्रा?
Kanwar Yatra में सबसे पहले शिव के भक्त शिव से मन्नत मांगते हैं। फिर सुबह 2-3 बजे कांवण लेकर घर से निकलते हैं। नियम है की कांवण का जलपात्र टेढ़ा मेढ़ा या टूटा नहीं होना चाहिए। घर से निकलने के बाद वो सबसे पास जहां से गंगा गुजरती है। वहां जल लाकर ये कांवडिए शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। गंगाजल भरने से पहले कावडिए व्रत रखते हैं। नियम ये भी है की गांगाजल लेने के बाद कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता। शिवलिंग का जलाभिषेक करने के बाद ये यात्रा पूरी हो जाती है।

ये नियम करने होते है फॉलों
इस दौरान कई नियम भी हैं जो कावड़ियों को फॉलों करने होते हैं। जैसे की…

कांवण यात्रा सूरज उगने के दो घंटे पहले से और सूरज ढलने से दो घंटे बाद तक ही करनी है
किसी भी दूसरे इंसान का खाना या पानी नहीं पीना
यात्रा में किसी पर क्रोध नहीं दिखाना ना ही कोई झगड़ा करना है
कांवडिए ज्यादा किसी से बात नहीं कर सकते जितनी जरूरत होती है उतना ही बोलते हैं
कांवड़ ले जाते वक्त किसी को छू नहीं सकते
सोते वक्त जमीन पर कपड़ा डालकर सोना है
इन दिनों नशा नहीं करना और रोज नहा धोकर साफ कपड़े पहन कर पूजा करनी है
कांवड़िए अपने किसी भी साथी का नाम नहीं ले सकते वो आपस में भोले नाम से बात करते हैं
कितने प्रकार की होती है कांवड़ ?
सामान्य कांवड़
कांवड के प्रकारों की बात करें तो सबसे पहली होती है सामान्य कांवड़। इस कांवड़ को कहीं भी रोककर कांवडिए रुक सकते हैं। इस यात्रा में कांवडिए दिन में कई बार खा पी सकते हैं। जो लोग कांवड़ ले जाने की शुरुआत करते हैं वो सामान्य कांवड ही लेकर जाते हैं। ये सबसे ज्यादा आसान कांवड़ मानी जाती है।

डाक कांवड़
दूसरी होती है डाक कांवड़। इसे आप नॉन स्टॉप कांवड़ यात्रा भी समझ सकते हैं।एक बार गंगा जलकांवड़ में भर लिया तो फिर इसे रुकना नहीं होता। ये कावड़िए उसी दिन भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं। कई बार ये दौड़ते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं। इस कांवड़ को कई लोग मिलकर पूरा करते हैं।

खड़ी कांवड़ या खलेसरी कांवड़
खड़ी कांवड़ या जिसे खलेसरी कांवड़ भी कहा जाता है।इसमें भक्त कांवड़ को दिनरात कंधे पर रखता है। दो या तीन लोग मिलकर खड़ी कांवड़ को लेकर जाते हैं।

बैठी कांवड़
इसे बैकुंठी या झूला कांवड़ भी कहा जाता है। इसे अक्सर एक ही व्यक्ति लेकर चलता है। रात के वक्त किसी पेड़ या तने के सहारे ये कांवड़टांग दिया जाता है। अब कांवड़ के कई नए रूप भी देखने मिलते हैं। जहां डिजे के साथ गाड़ी पर कांवड़ बनाई जाती है। कई शिवभक्त नाचते गाते इस कांवड को लेकर जाते हैं।