दुःखद -जन सरोकारों से जुड़े पत्रकार जगमोहन रौतेला की पत्नी का निधन, स्वतंत्र पत्रकार रही रीता चिरनिंद्रा की आगोश में, कैंसर से लड़ते मौत के लिए उनकी आखिरी पोस्ट पोस्ट पढ़ेंगे रुला कर रख देगी

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युगवाणी समेत कई पत्र-पत्रिकाओं में अपनी कलम की छाप छोड़ने वाली स्वतंत्र पत्रकार एवं जनसरोकारों से जुड़े पत्रकार जगमोहन सिंह रौतेला की पत्नी रीता खनका रौतेला ने आज प्रातः सुशीला तिवारी अस्पताल में बहुत कष्टों के बाद अपनी देह को त्याग दिया. आज ही मेडिकल कॉलेज को उनका शरीर शांत दिया जाएगा लेकिन उससे पहले कुछ तारीख अदाओं के लिए उनका शरीर उनके आवास बिठौरिया के जय इंद्र पुरम में लाया जाएगा

कई दिनों तक असहनीय पीड़ा से असहज रीता खनका ईश्वर से मृत्यु का आलिंगन मांग रही थी लेकिन मृत्यु की भी इतने नखरे की बार-बार उसे बुलाने के बाद भी वह उसके पास नहीं आ रही थी इससे रीता को ज्यादा कष्ट सहना पड़ रहा था.

बेड पर लेटे लेटे अपनी बीमारी असहनीय कष्ट की स्थिति के बारे में पोस्ट लिख रही थी जब उन्हें जीवन का कोई राह नहीं दिखाई तो 20 मई को अपना शरीर मेडिकल कॉलेज को सौंपने का निर्णय लिया और जिसकी औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गई.

ईश्वर के भी बड़े निराले निर्णय होते हैं कई बार तो जीवन को बाज के पंजों की भांति पकड़कर ले जाती है और कई बार जब मनुष्य खुद ही मृत्यु की आलिंगन की इच्छा करता है तो मौत भी उस समय नखरे दिखाती है.

ऐसा ही कुछ रीता रौतेला के साथ हो रहा था लेकिन आखिरकार उसकी इच्छा को बड़ी देर से ईश्वर ने सुना और आज सुबह उन्होंने इस कष्ट से मुक्ति पाई.

अपने अंतिम मैं को जानकर जो उन्होंने मृत्यु की सत्यता को समझा और आखरी पोस्ट इस तरह से लिखी जिससे कि दिल भर आता है .

बिस्तर पर लेटे जिंदगी से संघर्ष करते गीता खंड का अपने शब्दों को अपने पति लेखक पत्रकार जगमोहन सिंह रौतेला को बताते हुए वह है ऐसे लिख रहे हैं जैसे कि रीता खनका खुद लिख रही हो. उनका कहना है….
पिछले लगभग ढाई साल से मेरे कैंसर से बीमार होने के बाद से सैकड़ों शुभचिंतकों, मित्रों और परिजनों ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करने के साथ ही मेरे जल्दी स्वस्थ्य होने की हजारों बार प्रार्थनाएं की हैं. मेरे व मेरे परिवार का बीमारी से लड़ने के लिए हौसला बढ़ाया है. इस सब के लिए मैं व मेरा परिवार हमेशा आप लोगों का ऋणी रहेगा.

अब मेरी बीमारी ऐसी स्थिति में पहुँच गई है कि जहॉ से आगे के जीवन की कोई उम्मीद नहीं है. लोग मौत से संघर्ष करते हैं, पर मैं जीवन से संघर्ष कर रही हूँ. मुझे जीवन के सॉसों की आवश्यकता नहीं, बल्कि मौत का आलिंगन चाहिए, ताकि गहरी पीड़ा और वेदना से जल्द से जल्द मुक्त हो सकूँ. किसी भी प्राणी के जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु का आलिंगन ही है. और इसे मैं और मेरा परिवार पूरी सत्यता से स्वीकार करते

ऐसे में मेरी यह देह सॉसों से मुक्त हो जाती है तो बुलबुल और उसके बौज्यू को मेरी मुक्ति का दुख तो होगा, पर वे इस दुख की पीड़ा को स्वीकार करेंगे.