हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में की सुनवाई
हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में सुनवाई की। सुनवाई के बाद याचिकाकर्ताओं के संशोधित प्रार्थनापत्र को कोर्ट ने स्वीकार किया। कोर्ट ने इस मामले में विधानसभा सचिवालय को इस पर दो सप्ताह के भीतर अतिरिक्त जवाब पेश करने के लिए कहा है। अब मामले की अगली सुनवाई 31 मार्च को होगी।
विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ताओं के संशोधित प्रार्थनापत्र को स्वीकार कर लिया है। जिसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय को इस पर दो हफ्ते के भीतर अतिरिक्त जवाब पेश करने के लिए कहा है।
इस मामले में हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से दो हफ्ते के अंदर जवाब पेश करने को कहा। इस मामले में अब अगली सुनवाई 31 मार्च को होगी।
निष्काषित कर्मचारियों ने विधानसभा की जांच रिपोर्ट को दी थी चुनौती
निष्काषित कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में संशोधित प्रार्थनापत्र के माध्यम से विधानसभा की जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी। इस संशोधित प्रार्थनापत्र में कहा गया कि 2001 से 2015 तक की नियुक्तियां भी अवैध हैं। लेकिन जांच केवल 2016 से 2021 तक हुईं नियुक्तियों की ही की गई।
2016 से 2021 तक हुईं नियुक्तियों की जांच अवैध पाई गई। इसी आधार पर उन्हें निष्काषित किया गया। इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जांच के बाद उन्हें सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया। उनके साथ भेदभाव किया गया है। उन्होंने कहा कि यह प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ के समक्ष हुई मामले की सुनवाई
इल मामले की सुनवाई वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ के समक्ष हुई। मामले के मुताबिक बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने बर्खास्तगी के आदेश को एकलपीठ के समक्ष याचिका दायर कर कहा कि विधान सभा अध्यक्ष की ओर से लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 व 29 सितंबर 2022 को समाप्त कर दी थी।
लेकिन बर्खास्तगी आदेश में इस बात का उल्लेख नहीं है कि उन्हें किस आधार पर, किस कारण हटाया गया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित में नहीं है। यह आदेश विधि विरुद्ध है।
2001 से 2015 के बीच हुई बैक डोर नियुक्तियों को किया जा चुका है नियमित
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच हुई हैं। जिन्हें नियमित किया जा चुका है। इसके साथ ही उन्होंने याचिकाओं में कहा गया है कि 2014 तक तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई।
लेकिन उन्हें छह वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया। उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी। जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश दिया था। जबकि नियमानुसार छह माह की सेवा के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।
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