बुजुर्ग के शव को उठाने के लिए नहीं मिले चार कंधे, ऐसे हुआ अंतिम संस्कार


पलायन का दर्द उत्तराखंड से आज भी खत्म नहीं हुआ है। सरकार भले रिवर्स पलायन के लाख दावे करती हो, लेकिन पहाड़ के जिन गांव में कभी खूब रौनक रहा करती थी, आज उन गांव में ऐसा सन्नाटा पसरा है की अगर वहां किसी की मौत हो जाए, तो शव को उठाने के लिए चार कंधे तक नहीं होते है।
बुजुर्ग के शव को उठाने के लिए नहीं मिले चार कंधे
जी हां ऐसा ही कुछ हाल रूद्रप्रयाग जिले के ल्वेगढ़ गांव का है। ये गांव पलायन की ऐसी मार झेल रहा है की 9 अक्टूबर को गांव की एक बुजुर्ग महिला की दो दिन पहले मौत हो गई। लेकिन बुजुर्ग के शव को उठाने के लिए गांव में चार लोग तक नहीं मिले। पास के के एक गांव को जब इस घटना की सूचना मिली तो वहां से ग्रामीण गांव पहुंचे तब जाकर अगले दिन बुजुर्ग महीला का अंतिम संस्कार हो पाया।
विरान पड़ा है रूद्रप्रयाग का ल्वेगढ़ गांव
बताया जा रहा है की ल्वेगढ़ गांव में मूलभूत सुविधा ना होने से आज ये गांव पलायन के कारण पूरी तरह से विरान पड़ा है। कभी इस गांव में 15-16 परिवार रहते थे, लेकिन आज सिर्फ 3 लोग इस गांव में बचे हैं। ऐसे में सवाल तो उठना बनता है, कि आखिर ये गांव क्यों पलायन का दंश झेल रहा है? क्यों इस गांव को अनदेखा कर उसे लावारिसों की तरह छोड़ दिया गया। आखिर क्यों ये गांव वाले शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहे। ये गांव जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों से इन तमाम सवालों के जवाब पूछ रहा है।
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