#ncrtbooks @अभिभावकों को किताबों के खर्च में हो रही लूट के बाद यादआये पूर्व शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डेय (देखें वीडियो )

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हल्द्वानी एसकेटी डॉट कॉम

पूरे देश भर में एक सविधान, एक तिरंगा एक टैक्स एक कानून की बात तो की जा रही है लेकिन एक शिक्षा नीति लागू नहीं हो पा रही है उत्तराखंड में शिक्षा नीति का बुरा हाल है.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने प्रदेश भर में एनसीईआरटी बुक लगाने का निर्णय लिया था. अभिभावकों को एनसीईआरटी की किताबों पर खर्चा बहुत ही न्यूनतम लग रहा था तथा आसानी से वह अपने बच्चों को किताब दिला रहे थे.

इस बार फिर से पब्लिशर और बुक सेलर्स ने स्कूलों को क्या घुट्टी पिलाई की फिर से दोबारा एनसीईआरटी के अलावा अन्य पब्लिशर की बुक में फिर शुरू कर दी है जिस पर अभिभावकों की जेब ऊपर जबरदस्त भार पड़ गया है. 8वीं 10वीं की किताबें ₹2000 में आ जाती थी जो आज ₹ 6000 तक आ रही है.

नया सत्र शुरू हो चुका है और अभिभावकों की जेब पर जबरदस्ती डाका डाला जा रहा है इस बार तो हद ही हो गई जब पब्लिशर्स और स्कूलों की मिलीभगत से फिर से एनसीआरटी से अलग से अलग पब्लिसर की किताबें शुरू हो गई है. सरकार ने पहले पिछले वक्त 2 साल सभी स्कूलों में एनसीईआरटी अनिवार्य कर दी गई थी और साथ यह नियम बना दिया गया था की एनसीईआरटी की किताबों लगी रहेंगी और आने वाले 6 वर्षों तक एनसीईआरटी के अलावा किसी अन्य पब्लिशर की किताबें नहीं लगेगी.

लेकिन यहां तो हद ही हो गई शिक्षा और स्वास्थ्य का हब बन चुका हल्द्वानी आम लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है. विद्यालय से रिपोर्ट कार्ड मिलते वक्त सीधे एक स्लिप मिल रही है कि आपने फलाने बुक्सेलर के वहां से किताबें लानी है स्कूलों से ही उन्हें किताबों और साथियों की लिस्ट मिल जा रही है.

अभिभावक बेचारा क्या नहीं करता वह लिस्ट लेकर विद्यालय के बताए गए बुक सेलर के पास पहुंचता है और उसे कई घंटों तक इंतजार करने के बाद भी किताबें नहीं मिली है.

कई अभिभावकों ने कहा कि पिछले 2 दिन से उन्हें किताबें नहीं मिली है हल्द्वानी के एक प्रमुख बुक सेलर अथवा उन्हें बड़े पब्लिशर कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी हल्द्वानी ग्रामीण क्षेत्र के कई स्कूलों की पुस्तकें बाँटने के लिए उन्होंने हल्द्वानी के कुसमखेड़ा क्षेत्र में एक बैंकट हॉल किराए पर लेकर वहां पर किताबों और कॉपियों का बाजार लगा दिया. तथा 4 सिक्योरिटी गार्डों की मदद से लोगों को अंदर प्रवेश कराया गया भीड़ भाड़ तथा किसी भी तरह की अराजकता ना हो इसलिए अन्य भी प्रबंध किए गए..

कई अभिभावकों ने यह भी बताया कि वह पिछले दिवस भी आए थे लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा थी कि उन्हें बैरंग लौटना पड़ा पिछले 4 दिनों से वहां पर क्षेत्र के कई स्कूलों की किताबें बट रही है. प्रशासन की ओर से इस पर किसी किस्म की कोई तवज्जो नहीं उठाई गई. पब्लिक स्कूल में पढ़ाने वाले अभिभावक किताबों, कापियों और ड्रेस तथा अन्य कई तरह के अन्य स्टेशनरी बुक्सेलर द्वारा निर्धारित कीमत चुकाने पर मजबूरहैं. बुधवार को जब किताबें लेने वालों की ज्यादा भीड़ नहीं थी तो भी एक अभिभावक को २घंटे इंतजार करना पड़ा. अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज से 4 दिन पहले जब लाइन लगाकर लोग आ रहे थे तो कितना समय लगा होग़ा.

नोट -यह खबर किसी स्कूल अथवा पब्लिशर अथवा बुक सेलर के खिलाफ नहीं बल्कि अभिभावकों की पीड़ा है इसे अन्यथा ना समझे.