Uttarakhand Election : टिहरी में महारानी को बॉबी पंवार की चुनौती, क्या टूट जाएगा मिथक या बना रहेगा

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टिहरी सीट पर जहां एक ओर बीजेपी ने एक बार फिर से माला राज्य लक्ष्मी शाह को मैदान में उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने नए चेहरे जोत सिंह गुनसोला पर दांव खेला है। इसी बीच बॉबी पंवार ने टिहरी सीट से निर्दलीय ताल ठोकी है। जिस से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। बॉबी पंवार के मैदान में उतरने से मुकाबला और भी चिलचस्प हो गया है क्योंकि बॉबी ने ना केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।


माला राज्यलक्ष्मी शाह के लिए सीट बचाना बड़ी चुनौती
टिहरी की सीट पर बॉबी पंवार के मैदान में आने से टिहरी राजघराने की रानी और भरतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार माला राज्यलक्ष्मी शाह के लिए मुश्किलें बढ़ती हुईं नजर आ रही हैं। बॉबी के निर्दलीय ताल ठोकने के बाद राज्यलक्ष्मी शाह के लिए अपनी इस सीट को बचाए रखना किसी बड़ी चुनौती की तरह नजर आ रही है। सालों से टिहरी सीट पर राजघराने का तिलिस्म कोई नहीं तोड़ पाया। इस सीट को लेकर तो गढ़वाल में ये कहावत तक प्रचलित है कि बोलंदा बद्री कभी नहीं हारते और बोलंदा बद्री टिहरी के राजा को कहा जाता है।

बॉबी पंवार ने बढ़ाई दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की धड़कन
बॉबी पंवार ने बीते शुक्रवार को देहरादून में अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान युवाओं का जो हुजूम बॉबी के साथ दिखा। ये हुजूम इस सीट से कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों के लिए दिल की धड़कने बढ़ाने वाला था। बॉबी पंवार के नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान ना केवल युवाओं की अच्छी खासी संख्या थी बल्कि इस दौरान महिलाएं भी नजर आईं। बॉबी पंवार के शक्ति प्रदर्शन ने दोनों पार्टियों को सोचने पर मजबूर तो कर दिया है।

पहाड़ की आवाज बनकर उभरे हैं बॉबी पंवार
यूं तो बॉबी पंवार युवाओं की आवाज बनकर हमेशा उनकी समस्याओं के बारे में सरकार को चेताते हुए नजर आते हैं। इसके साथ ही वो पहाड़ से जुड़े और पहाड़ के लोगों की भावनाओं से जुड़े मुद्दों को भी उठाते रहे हैं। भू कानून, मूल निवास, जल जंगल जमीन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मसले पहाड़ की जनता को परेशान किए हुए हैं। बॉबी पंवार इन्हीं मुद्दों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। जिस कारण उनके साथ जन भावनाएं भी जुड़ी हुईं हैं।

रानी के साथ ही गुनसोला की भी बढ़ी मुश्किलें
बॉबी के ताल ठोकने से टिहरी सीट पर एक तरफ माला राज्य लक्ष्मी शाह की चुनौतियां बढ़ रहीं हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस के उम्मीदवार जोत सिंह गुनसोला के लिए भी राह आसान नहीं है। दरअसल जोत सिंह गुनसोला और बॉबी पंवार मुख्य रूप से एक ही इलाके के वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखते हैं। दोनों का वोटर बैंक एक होने से इन दोनों के लिए भी मुश्किलें तय हैं।

क्या टूट जाएगा मिथक या बना रहेगा ?
टिहरी सीट पर कुछ ऐसे मिथक हैं जो दिलचस्प भी है और चर्चाओं में भी हैं। इस संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डाले तों शाही परिवार के सदस्यों ने यहां की सीट से 13 बार चुनाव लड़ा और उन्हें 11 बार जीत मिली। 1971 में मार्च में चुनाव हुए और परिवार के मुखिया मानवेन्द्र शाह चुनाव हार गए। 2007 में जब इस सीट पर उपचुनाव हुआ तब 21 फरवरी की तारीख थी और तब भी ठंड के कारण मंदिर के कपाट बंद थे। नतीजा ये हुआ कि मानवेंद्र शाह चुनाव हार गए।

जिन दो चुनावों में राजघराने की हार हुई उन दोनों ही अवसरों पर मंदिर के कपाट बंद थे। बस तभी से ये मिथक बन गया कि खुद को बोलंदा बद्रीनाथ बोलने वाले राजघराने के सदस्य बद्रीनाथ का कपाट बंद होने पर जीत नहीं पाते हैं। दिलचस्प ये है कि इस बार 19 अप्रैल को उत्तराखंड में वोटिंग होनी है और उस समय भी बद्रीनाथ के कपाट बंद ही रहेंगे। ऐसे में क्या ये मिथक टूटेगा या बना रहेगा ये एक बड़ा सवाल है।