क्या आप उत्तराखंड के इस ताल के बारे में जानतें हैं जहां शोर करने पर उठने लगते हैं बुलबुले ?, जानें मान्यता
क्या आपने कोई ऐसा ताल देखा या सुना है जिसके पास जाकर अगर आप जरा भी शोर करोगे तो उसमें बुलबुले उठने लगते हैं। विश्वास नहीं हो रहा है ना। बता दें उत्तरकाशी में मुखवा गांव के पास एक ऐसा ही ताल है जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो ये शांति प्रेमी ताल किसी भी प्रकार के शोर को बरदाश नहीं कर पाता है और गुस्से में उबलने लगता है। जानते हैं क्या है इस मंगलाछु ताल का रहस्य।
मंगलाछु ताल की पौराणिक मान्यता
मंगलाछु ताल समुद्रतल से 3650 मीटर की ऊंचाई पर है, इस मंगलाछु ताल के बारे में कई मान्यताएं हर्सिल की सुन्दर वादियों में फैली हुई हैं। कहा जाता है इस मंगलाछु ताल में अगर कोई भी शोर करता है तो स्थिर दिखाई देने वाले इस ताल में बुलबुले उठने लगते हैं। उमारमण सेमवाल ने अपनी पुस्तक गंगोत्री तीर्थ ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्यन में इस मंगलाछु ताल को सोमेश्र्वर ताल कहा है।
किवदंती के अनुसार जब स्थानीय लोग हिमाचल से क्यारकोटी होते हुए सोमेश्वर देवता को मंगलाछु लाए थे तब उनकी डोली को इसी ताल में स्नान कराया गया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब भी इस इलाके में बारिश नहीं होती है तो सोमेश्वर देवता की डोली को मंगलाछु ताल ले जाया जाता है और पूजा पाठ करके सोमेश्वर देवता की डोली को यहां स्नान करवाया जाता है।
मान्यता है की ऐसा करने से बारिश होती है। मुखबा गांव के तीर्थ पुरोहित इस मंगलाछु ताल को यक्षों और गंधर्वो का ताल कहते हैं। वो आगे बताते हैं की ये मंगलाछु ताल एक पवित्र ताल है और अगर कोई इस तालाब के पानी को दूषित या जूठा करता है तो यहां पर अतिवृष्टि होती है।
भूगोल की निगाह से जाने मंगलाछु ताल के बारे में
रामचंद्र उनियाल पि.जी. कालेज के भूगोल प्रोफेसर बचन लाल कहते है उच्च हिमालयी क्षेत्र में कुछ जगहें ऐसी हैं जहां आसपास हलचल या शोर होने पर धरती की सतह पर पड़ी बारीक दरारों के जरिए हवा पानी पर दबाव बनाती है और जमीन के अंदर का पानी बारीक छेदों के जरिये बाहर आता है जो बबल्स के रुप में उठता दिखाई देता है। प्रोफेसर बचन लाल आगे बताते है की भौगोलिक भ्रमण के दौरान उन्हें केदारनाथ मंदिर के पास एक ऐसा ही ताल देखा था। जिसमें इसी ताल की तरह तेज आवाज करने पर तालाब की सतह से पानी के बुलबुले उठते दिखाई पड़ते थे, हालांकि अभी इस विषय पर काफी शोध की जरुरत है
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