नहाय खाय के साथ छठ पूजा पर्व आज से शुरू

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आज से नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरूआत हो रही है। इसके साथ ही खरना, शाम का अर्घ्य और सुबह का अर्घ्य निवेदित किया जाएगा। देश के बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में छठ पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। साथ ही उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में भी ये पर्व मनाया जाने लगा हैं ये पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यही कारण है कि इसको षष्ठी भी कहते हैं। छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य की पूजा की जाती है। उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। घर की महिलाएं अपनी बच्चों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए 36 घंटों का निर्जला उपवास रखकर सूर्य और छठी मैया की पूजा करतीं हैं।


छठ पूजा का पहला दिन
छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय होता है। पंचांग के अनुसार यह तिथि कार्तिक शुक्ल चतुर्थी कहलाती है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर कुछ नियम का पालन करती हैं। उपवास रखी महिलाएं अपने घर की साफ-सफाई और पूजन की सामग्रियों की व्यवस्था करती हैं। साथ ही छठ व्रती इस दिन स्नान करने के बाद सात्विक भोजन करती हैं। इसके बाद परिवार के अन्य लोग भोजन करते हैं।


छठ पूजा का दूसरा दिन
छठ पूजा के दूसरा दिन तिथि के हिसाब से खरना कार्तिक शुक्ल पंचमी को आता है। खरना के दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं। साथ ही इस दिन महिलाएं स्नान करके छठी मैया के लिए प्रसाद बनाती हैं। छठी मैया और सूर्य के निमित्त प्रसाद तैयार करने के लिए शुद्ध बर्तन और मिट्टी के चूल्हे का प्रयोग किया जाता है। इसके शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाई जाती है। जो कि शाम की पूजा के बाद परिवार के बीच बांटा जाती है।


छठ पूजा का तीसरा दिन
छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी उपवास रखी महिलाएं दोपहर में पूजा के लिए प्रसाद और पकवान बनाती है। इस दिन विशेष रूप से प्रसाद के तौर पर ठेकुआ, पूड़ी आदि तैयार किए जाते हैं। शाम के समय सभी छठघाट पर जाते हैं। वहां अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।


छठ पूजा का चौथा दिन
कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि को छठ पूजा पर उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन उपवास रखी महिलाएं और भक्त सूर्याेदय से पहले जल में खड़े होकर हाथ में नारियल और धूप लेकर भगवान सूर्य के उदित होने का इंतजार करते हैं। सूर्याेदय होने पर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद महिलाएं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करती हैं।


छठ पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
छठ पूजा में कुछ खास सामग्रियों के बिना छठ पर्व पूरा नहीं हो पाता है। छठ पूजा की पूजन सामग्रियों में बांस की टोकरी, नारियल, सूप, अक्षत, पत्ते लगे गन्ने, सिंदूर, धूप, दीप, थाली, लोटा, नए वस्त्र, नारियल पानी भरा, अदरक का हरा पौधा, मौसम के अनुकूल फल, कलश, कुमकुम, पान, सुपारी की जरूरत होती है।


छठ पूजा का तरीका
छठ पूजा करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान आदि से निवृत होकर छठ व्रत का संकल्प लें। साथ ही सूर्य देव और छठी मैया का ध्यान लगाएं। छठ पूजा के दिन निर्जला व्रत रखकर उसका विधिवत पालन किया जाता है। छठ के पहले दिन संध्याकाली अर्घ्य होता है, जिसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसे में इस दिन सूर्यास्त से थोड़ा पहले छठ घाट पर पहुंचकर वहां स्नान करने के बाद अस्ताचलगामी सूर्य को पूरी निष्ठा के साथ अर्घ्य दें।


छठ पूजा पर्व पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल की टोकरी या सूप का प्रयोग किया जाता है। बांस या पीतल की टोकरी का प्रयोग करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें। छठ पूजा में जिन टोकरियों या सूपों का इस्तेमाल किया जाता है। उसमें फल, फूल, गन्ने, पकवान आदि सहित पूजा की सामग्रियों को रखा जाए। साथ ही सूप या टोकरी पर सिंदूर लगाएं।


सूर्य देव को अर्घ्य देते वक्त टोकरी में पूजा की सारी सामग्रियों का होना जरूरी होता है। साथ ही पूरे दिन और रात भर निर्जला व्रत रखकर अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को जल अर्पित करें। सूर्य देव को अर्घ्य निवेदित करने के साथ ही मन ही मन उनसे अपनी मनेकामना की जाती है।


छठ पूजा के दौरान किया जाता है ऐसा
छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय के बाद व्रती स्नान-ध्यान करने के बाद कद्दू-भात का खाती है। छठ व्रती को नहाय-खाय के दिन शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करना होता है। इस दिन जब छठ व्रती भोजन कर लेती हैं तभी घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं। छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन व्रती महिलाएं स्नान के बाद चावल और गुड़ का खीर बनाकर खरना माता को अर्पित करती हैं। शाम को पूजा के बाद घर सभी लोग पहले खरना प्रसाद ग्रहण करने के बाद भोजन करते हैं।


क्या है मान्यता
मान्यता है कि लंका जीतने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने व्रत रखा और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्याेदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
वहीं एक और मान्यता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत के समय में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।


जबकि एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें मृत पुत्र पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी समय ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।