दिवाली पर बुझा बॉलीवुड का सितारा: अभिनेता असरानी का 84 वर्ष की उम्र में निधन, शोले के ‘जेलर’ ने छोड़ी यादों की अमिट छाप


नई दिल्ली। बॉलीवुड के लिए 20 अक्टूबर 2025 का दिन गहरा दुख लेकर आया। मशहूर अभिनेता असरानी (Asrani) का 84 साल की उम्र में निधन हो गया। दीवाली के दिन यानी सोमवार को उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। बताया जा रहा है कि वह पिछले कई दिनों से फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे थे। डॉक्टरों की पूरी कोशिशों के बावजूद 20 अक्टूबर की शाम करीब 4 बजे उनका निधन हो गया। असरानी के निधन से फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
असरानी का पूरा नाम गोवर्धन असरानी (Goverdhan Asrani) था। उनका जन्म 1941 में राजस्थान के जयपुर में हुआ था। उनके पिता एक कार्पेट कंपनी में मैनेजर थे और असरानी ने शुरुआती शिक्षा जयपुर से ही पूरी की। हालांकि बचपन से ही उनका रुझान अभिनय की ओर था। उन्होंने कुछ समय तक आकाशवाणी में काम किया और फिर पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (FTII) में अभिनय की औपचारिक शिक्षा लेने पहुंचे। यहीं से असरानी के फिल्मी सफर की शुरुआत हुई।
फिल्म इंडस्ट्री में असरानी को पहचान निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की नजरों में आने के बाद मिली। उस समय ऋषिकेश मुखर्जी अपनी फिल्म ‘गुड्डी’ के लिए नए कलाकारों की तलाश कर रहे थे। गुलजार के माध्यम से असरानी को यह मौका मिला और उन्होंने फिल्म ‘गुड्डी’ में शानदार अभिनय कर सभी का ध्यान खींच लिया। इससे पहले असरानी ने साल 1967 में ‘हरे कांच की चूड़ियां’ फिल्म से डेब्यू किया था, लेकिन सफलता का स्वाद उन्हें बाद में मिला।
‘गुड्डी’ के बाद असरानी का करियर पटरी पर आ गया और उन्होंने एक के बाद एक हिट फिल्मों में काम किया — ‘बावर्ची’, ‘सीता और गीता’, ‘शोर’, ‘रास्ते का पत्थर’ जैसी फिल्मों में उनके किरदारों को खूब सराहा गया। परंतु साल 1975 में आई फिल्म ‘शोले’ ने असरानी को अमर कर दिया। फिल्म में उनका ‘जेलर’ वाला किरदार और मशहूर डायलॉग “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” आज भी दर्शकों की जुबान पर है। इस किरदार ने असरानी को हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार कॉमिक अभिनेताओं में शुमार कर दिया।
असरानी ने केवल अभिनय तक ही खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि निर्देशन में भी हाथ आजमाया। उन्होंने 1977 में ‘चला मुरारी हीरो बनने’ नाम की सेमी-बायोग्राफिकल फिल्म का निर्देशन किया। हालांकि फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर खास सफलता नहीं मिली, लेकिन असरानी ने हार नहीं मानी और आगे ‘सलाम मेमसाब’, ‘हम नहीं सुधरेंगे’, ‘दिल ही तो है’ और ‘उड़ान’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।
उनके फिल्मी सफर में ‘पिया का घर’, ‘मेरे अपने’, ‘परिचय’, ‘नमक हराम’, ‘अनहोनी’ जैसी कई यादगार फिल्में शामिल हैं। उन्होंने निगेटिव रोल भी निभाए, जैसे कि ‘कोशिश’ और ‘चैताली’ में, लेकिन दर्शकों ने उन्हें सबसे ज्यादा कॉमेडी किरदारों में पसंद किया।
असरानी ने अपने करियर में लगभग 350 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उनके किरदारों की खासियत थी — सादगी, समय पर डायलॉग डिलीवरी और हास्य का स्वाभाविक अंदाज। उनके निधन से हिंदी सिनेमा ने एक ऐसा कलाकार खो दिया, जिसने हंसी के साथ अभिनय की गहराई भी दर्शकों के दिलों में उतारी।
दिवाली के इस दिन असरानी का जाना फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक गहरा सदमा है। शोले के इस ‘जेलर’ ने भले ही दुनिया को अलविदा कह दिया हो, लेकिन उनकी आवाज़, उनके डायलॉग और उनके हंसमुख चेहरे की यादें हमेशा अमर रहेंगी।
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